पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में अवैध कब्जों पर हर रात बुलडोजर चल रहे हैं .. कभी ओखला तो कभी लाजपत नगर .. लेकिन न्यूज चैनल छोड़िए इसकी चर्चा सोशल मीडिया में भी कहीं है ??
और ये बुलडोजर अमीर गरीब किसी को नहीं देख रहे हैं .. ऐसा लगता है मानो ये सरकार पूरी दिल्ली के अवैध कब्जों को अगले छः महीने में समतल कर देगी..
ये काम देखा जाय तो बहुत पहले होना चाहिए था, शायद भाजपा के पिछली सरकारों के समय ही लेकिन ये आज तक नहीं हुआ था .. अब दिल्ली को असली राजधानी बनाने की तैयारी पहली बार शुरू हुई है .. लेकिन ये सब करके शायद भाजपा अब अगले दो तीन चुनावों में दिल्ली में वापसी नहीं करेगी .. लेकिन भाजपा को इससे अब शायद फर्क पड़ना बंद हो चुका है और यही बात इस पार्टी को दूसरे पार्टियों से आज अलग करती है ..
370 हटाने के बाद भी तो भाजपा कश्मीर में सरकार में नहीं है .. राम मंदिर बनाने के बाद भी भाजपा अयोध्या की सीट हार जाती है .. मोदी जी किसी तरह बनारस से अपनी सीट बचा पाते हैं .. लेकिन इसके बाद भी मोदी जी और अमित शाह जी को कुछ मुद्दों पर समझौते नहीं करना है तो नहीं करना है .. यही अच्छी बात है .. चाहे 400 सीटें आए या 240 काम तो चालू रहेगा ..चाहे पिछले दिनों 18 पाकिस्तानी जासूस पकड़े गए जिसमें ज्योति मल्होत्रा के आलावे 16 मजहबी थे लेकिन यहां की मीडिया और सोशल मीडिया के लिखाड़ ज्योति मल्होत्रा के ब्रा और पैंटी में ही उलझे रहे .. ये सरकार इसलिए भी हमें सीरियसली नहीं लेती है जब यहां के ज्ञानचंदों ने सीजफायर के मुद्दे पर मोदी जी का नाम सरेंडर मोदी रख दिया था ..
जब ये बात हम जानते हैं कि पूरे मालदीव के टूरिज्म इकॉनमी की वाट इस इंसान ने लक्षद्वीप के सी बीच पर एक कुर्सी पर बैठके रातों रात लगा दी थी, फिर भी हम आए दिन इन्हें डिप्लोमेसी सिखाने से बाज नहीं आते हैं .. जब सीजफायर के तीन दिन बाद ट्रंप अपनी बात से पलटकर ये भी बयान दे देता है कि उसने हिंदुस्तान पाकिस्तान के युद्ध में कोई मध्यस्थता नहीं करवाई तब भी हमें अपनी सेनाओं के शौर्य और पराक्रम पर हर दिन सवाल उठाना होता है ..
Narendra Modi जी को कमसेकम ऐसे स्खलित वोटरों का वोट तो नहीं चाहिए .. मोदी जी आजाद भारत के पिछले 78 सालों के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री यूं ही नहीं रहे हैं पिछले 12 सालों से और तीन टर्म के फुल मेजॉरिटी से .. और ये मैं इसलिए कह रहा हुं कि 90 के दशक में जब हम जवान हुआ करते थे तब कोई vp Singh तो कभी चंद्रशेखर तो कभी देवगौड़ा जैसे हल्के लोग जोड़ तोड़ करके प्रधानमंत्री बना करते थे कुछ चंद महीनों के लिए ..
इक्कीसवीं सदी के शुरुआत में भाजपा में वाजपेई जी ने पार्टी की कमान संभाली लेकिन तब अगर आडवाणी जी या मुरली मनोहर जोशी जी या सुषमा स्वराज जी या कल्याण सिंह जी या उमा भारती जी साथ ना होते तो वाजपेई जी अकेले क्या वह केंद्रीय नेतृत्व दे पाते जो आज मोदी जी देने का दम खम रखते हैं ..
फर्क ये आया है पिछले दो दशकों में कि वाजपेई जी के समकालीन बड़े नेताओं ने अपने दम खम पर अपनी पहचान बनाई थी जबकि मोदी जी के कार्यकाल में मैं आपको दर्जनों उदाहरण दे सकता हुं जहां मोदी जी ने जमीन से उठाकर नेताओं को उन्हें आज केंद्रीय राजनीति के बड़े पटल पर स्थापित किया है .. सिर्फ योगी जी ही एक अपवाद हो सकते हैं ..
इसीलिए कहता हुं कि चाहे युद्ध की बात हो या राजनीति की हमें मुद्दे की सेंसिटिविटी को समझना होगा और उसी के हिसाब से अपना राष्ट्रीय आचरण रखना होगा .. नहीं तो उलझे रहते ज्योति मल्होत्रा के ब्रा और पैंटी में .. कौन रोक रहा है। ये बात दिल्ली में होटल क्राउन प्लाजा पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच नई दिल्ली की बैठक में बाबूजी सुशील कुमार सरावगी जिंदल राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने उद्बोधन में बताई। राहुल गोयल राष्ट्रीय महामंत्री ने विज्ञप्ति जारी कर बताई।
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